सोसाइटी रजिस्टेशन ऐक्ट 1860
वैज्ञानिक शैक्षणिक,
धर्मार्थ एवं कल्याणार्थ
हेतु निर्मित समितियों
के पंजीकरण एवं
प्रत्येक पांच
वर्ष बाद पंजीकृत
समितियों के नवीनीकरण
का कार्य इस अधिनियम
के अन्तर्गत किया
जाता है। संस्थाओं
की प्रबन्ध समिति
की वार्षिक सूची
के पंजीकरण तथा
संस्थाओं द्वारा
अपने पंजीकृत उद्देश्यों
या पंजीकृत विधान
में आवश्यकतानुसार
परिवर्तन, नाम
में परिवर्तन की
कार्यवाही प्रस्तुत
किये जाने पर सोसाइटी
रजिस्ट्रेशन ऐक्ट
के सुसंगत नियमों
के अन्तर्गत पंजीकरण
का कार्य किया
जाता है। संस्थाओं
के द्वारा वित्तीय
अनियमितताओं की
शिकायत प्राप्त
होने पर संस्था
के लेखों की जांच
एवं संस्था के
कार्य कलापों का
निरीक्षण भी किया
जाता है। अधिनियम
की धारा 4 (1) के परंतुक
के अन्तर्गत यदि
चुनावोपरान्त
पिछली कमेटी के
पदाधिकारी या कार्यकारिणी
सदस्य आपत्ति प्रस्तुत
करते हैं तो रजिस्ट्रार
द्वारा आपत्तियां
आमन्त्रित करके
उस पर सो0रजि0ऐक्ट
के सुसंगत नियमों
के अन्तर्गत आदेश
पारित किये जाते
हैं। यहॉं यह उल्लेखनीय
है कि यदि संस्था
की प्रबन्ध समिति
में चुनाव विवाद
विद्यमान है तो
अधिनियम की धारा-25(1)
के अन्तर्गत प्रकरण
विहित प्राधिकारी
को सन्दर्भित किये
जाने की व्यवस्था
है। यदि विहित
प्राधिकारी'' द्वारा
संस्था के चुनावों
को निरस्त किया
जाता है अथवा रजिस्ट्रार
को यह समाधान हो
जाय कि किसी संस्था
के चुनाव संस्था
के पंजीकृत विधान
के अनुसार समय
से नहीं हुए है
तथा प्रबन्ध समिति
कालातीत हो चुकी
है तो रजिस्ट्रार
संस्था की प्रबन्ध
समिति के चुनाव
अपनी देख-रेख में
सम्पन्न कराते
है। संस्था द्वारा
यदि पंजीकरण/नवीनीकरण
प्रमाण-पत्र गलत
तथ्यों को प्रस्तुत
करके फर्जी प्रपत्रों
के आधार पर प्राप्त
किया जाता है, अथवा
संस्था के क्रियाकलाप
जन विरोधी है, तो
ऐसी दशा में रजिस्ट्रार
को अधिनियम की
धारा 12 डी (1) के अन्तर्गत
पंजीकरण/नवीनीकरण
प्रमाण-पत्र के
निरस्त किये जाने
के आदेश संस्था
को सुनवाई का पर्याप्त
अवसर प्रदान करने
के पश्चात पारित
करने का अधिकार
होता है।
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932:
इस अधिनियम के
अन्तर्गत भागीदारी
फर्मों के पंजीकरण,
पंजीकरण के पश्चात्
फर्म के व्यवसाय
के परिवर्तन, पंजीकृत
फर्म के ब्रान्च
खोलने या बन्द
करने की सूचना,
किसी भागीदार का
भागीदारी फर्म
की भागीदारी में
शामिल होने या
पृथक होने की सूचना
अथवा फर्म के विघटित
होने की सूचना
तथा अवयस्क जो
पूर्व से किसी
पंजीकृत भागीदारी
में लाभांश हेतु
भागीदार है, के
वयस्क होने पर
शामिल होने की
सूचना जो उ0प्र0
भारतीय भागीदारी
रूल्स 1933 में दिये
गये निर्धारित
प्रारूप पर प्रस्तुत
करने पर उसकी सूचना
पंजीकृत करने एवं
तत्संबंधी प्रमाण-पत्र
जारी करने की कार्यवाही
की जाती है।
चिट फण्ड अधिनियम 1982 :
चिट फण्ड अधिनियम
1982 के अन्तर्गत उ0प्र0
शासन ने उ0प्र0 चिट
फण्ड नियमावली
1988 बनायी। इस अधिनियम
के अन्तर्गत व्यवसाय
करने वाले, व्यक्तिगत,
भागीदारी फर्मों
या कम्पनियों को
अपने नाम में चिट,
चिट फण्ड कुरी
या चिटी का प्रयोग
किया जाना आवश्यक
होता है एक समय
में व्यक्ति द्वारा
25000/- भागीदारी फर्मों
द्वारा रू0 1,00000/- तथा
कम्पनियों द्वारा
अपने नेट ओन फण्ड''
के दस गुना तक के
चिट ग्रुपों के
संचालन का अधिकार
है।
दि प्राइज चिट एवं
मनीसर्कुलेशन
(बैनिंग) ऐक्ट 1978 :
इस अधिनियम के
अन्तर्गत किसी
व्यक्ति फर्म या
कम्पनियों द्वारा
इनामी योजना अथवा
धन परिचालन का
कार्य जो इस अधिनियम
के अन्तर्गत निषिद्व
है करती है तो रजिस्ट्रार
को उनके विरूद्व
अधिनियम की अंतर्गत
कार्यवाही करने
के अधिकार प्रदान
किये गये।
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